Saturday 23 January 2016

जैविक कृषि - गौशाला की बिछावन का महत्व और उपयोग


जैविक कृषि - गौशाला की बिछावन का महत्व

जैविक कृषि में भारतीय नस्ल की गाय की गोबर, मूत्र और वनस्पति के अंश से बने कम्पोस्ट का सबसे महत्व पूर्ण स्थान होता है |
यहाँ पर भारतीय नस्ल के गाय के मल-मूत्र पर जोर देने का मेरा मूल उद्देश्य है की भारतीय नस्ल के गाय के मल-मूत्र में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या विदेशी नस्ल जानवर के मल-मूत्र अपेक्षाकृत बहुत अधिक होती है |
इससे बने गोबर के कम्पोस्ट खाद के खेत में डालने के उपरान्त नत्रजन (नाईट्रोजन) संग्रहण करने वाले बेक्टीरिया एवं लाभदायी फंगस को सक्रीय करने में ज्यादा प्रभावशाली होता है |
इस परिस्थिति में ज्यादा लाभ दायक गोबर खाद के निर्माण में कुछ एक बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है | कम्पोस्ट बनाने की विधियों का वर्णन अन्य स्थल पर मेरे द्वारा किया गया है पर गोबर खाद के लिए प्राथमिक अंश कौन से होने चाहिए यह महत्वपूर्ण है |
देशी गाय की गौशाला के बिछावन अपने आप में बहुत ही महत्व पूर्ण होता है |
गौशाला में धान या गेहूं की पुआल की बिछावन लगाना चाहिए जिससे गोबर और मूत्र इस में लिपट या भीग जाए |
प्रमुख तथ्य यह है इस बिछवान के साथ और क्या बिछाया जय जिससे की खाद की सक्रियता और ताकत में जबरजस्त वृद्धि हो सके |
इस बिछावन के साथ पीपल, बरगद, नीम, करंज, जंगली तुलसी, ओर् बांस के पेड़ से झड़े सूखे या हरे पत्ते भी बिछाना सर्वोत्तम होता है |
ध्यान रखना है की पहली परत इन पेड़ के पत्तों का बिछवान किया जाय इसके ऊपर ही दुसरी परत पुवाल की बिछवान की बिछायी जाए | गोबर या गौ-मूत्र का एक अंश भी व्यर्थ नही होना चाहिए |
इस बिछवान को 24 घंटे से ज्यादा गौ-शाला में नही बिछा रहना चाहिए |
उपयुक्त होता है शाम को बिछा कर पूर्वान्ह 10 बजे इसे पुरी तरह गोबर और मूत्र में लपेट कर खाद के ढेर तक पहुचा देना चाहिए |
बिछावन हटा ने के बाद गौ-शाला को साफ़ पानी से अच्छी धुलाई करनी चाहिए |
इस दो परत के बिछावन की विधि से खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ मात्रा में भी वृद्धि होती है |

जैविक खेती और नीम खाद -

जैविक खेती और नीम खाद --
नीम की खाद बनाने के लिए अच्छी तरह विधिवत तैयार 1 क्विंटल गोबर खाद में 1 क्विंटल नीम के बीजों की खली मिला कर बनाया जाता है यह मात्रा 1 एकड़ खेत में डालने के लिए पर्याप्त होती है | यह खाद फंगस से होने वाले बहुंत से रोगों से फसल की रक्षा करती है | यह खाद ह्यूमस की संतुलित मात्रा बनाने के साथ-साथ मित्र बेक्टीरिया के संख्या में वृद्धि करने सहायक होती है | इस खाद से दीमक एवं अन्य मृदा के रोगों के नियंत्रण में सफलता मिलेगी |


नीम के पत्तों से कीटनाशक दवा

नीम के पत्तों से कीटनाशक दवा -
नीम की पेड़ की 15 किलोग्राम पत्तिया तथा 5 किलोग्राम जेट्रोफा पेड़ की पत्तियाँ को लगभग 200 लीटर पानी में डाल कर इसे 15 दिन तक सड़ने के लिए छोड़ देतें है | लगभग 15 दिनों के पश्चात् जब पत्तियाँ पुरी तरह सड़ जाती है इस सावधानी से छान कर रख देतें है शाम के समय खड़ी फसल पर इसका छिडकाव किया जाता है | इस दवा का स्प्रे कीटनाशक एवं फफूंद नाशक दोनों की भूमिका का निर्वाह करता है जेट्रोफ की पत्तियाँ नही मिलने पर केवल नीम की पातियों से भी यह दवा बनाई जा सकती है |
निबोली (नीम के बीज ) काढ़ा :-
इस ही वर्ष के नीम के बीज से तैयार 2 किलोग्राम निबोली पावडर को 5 लीटर देशी गाय की गोमूत्र में तथा 12 लीटर पानी में मिलकर एक बड़े पुराने मटके में 5 दिन तक गलाते है | पांच दिनों के तत्पश्चात इस घोल को को आधा बचने तक उबाल कर काढ़ा बनाते है| इस काढ़े को सावधानी से छान कर 100 मिली लीटर, 16 लीटर पानी में मिलाकर फसलो पर स्प्रे करने पर लगभग हर किट के अन्डो तथा निप्फ़ नियंत्रण होता है | यह दवा फंगस के विस्तार पर भी रोक लगता है |

Sunday 30 August 2015

बंजर, ऊसर या अति क्ष|रीय भूमि में जैविक खेती कैसे करें .......................


बंजर, ऊसर या अति क्ष|रीय भूमि में जैविक खेती कैसे करें .......................

बंजर या ऊसर भूमि का निर्माण के निम्नलिखित कारण हो सकतें है अत्यधिक दिनों तक खाली पड़े होने या अधिक रासायनिक खादों के प्रयोग, एक ही प्रकार के फसल का कई वर्षों तक रोप जाने, विशाल क्षेत्र से जल बहाव द्वारा लवण आकर छोड़ना, वर्ष के अधिकतम समय तक भूमि का शुष्क रहना आदि | तकनिकी रूप से वह भूमि जिसका पी.एच. 8.5 से अधिक होता है । पानी में घुलनशील सोडियम की मात्रा 15 प्रतिशत से ज्यादा होती है; ऐसी भूमियों में ऊपरी सतह पर सोडियमके कार्बोनेट तथा बाईकार्बोनेट लवण की ज्यादा उपस्थिति के कारण सफेद परत सी बन जाती है।
इस तरह की भूमि फसल उत्पादन के लिए लगभग अनुपयुक्त होती है | इस तरह की भूमि को भी जैविक विधि से जैविक खेती के लिए योजनाबद्ध तरीके से उपयुक्त बनाया जा सकता है | किसी भी भूमि की गुणवत्ता उस मे उपस्थित ह्युमस, खनिज, मृदामाईक्रोबायल (लाभकारी बैक्टीरिया) और जैव रसायन तथा नमी की मात्रा पर निर्भर करता है, बंजर या ऊसर भूमि पर इनकी संतुलित मात्रा स्थिति सुधार कर जैविक कृषि के योग्य बनाती है |
सबसे पहले --- बंजर या ऊसर भूमि के 90x90 फीट के हिस्से का चयन करें न कम न ज्यादा | इस भूमि को सबसे पहले पूर्णतया समतल करे, किन्तु सफ़ेद नमक सी परत वाली भूमि के उपर की 6” मिट्टी को निकाल कर फेंक देना सर्वोत्तम होता है |
द्वितीय चरण में -- इस भूमि की मिट्टी काफी गहराई से मिट्टी पलटने वाले से जुताई करना |
तृतीय चरण में भूमि में पानी भरकर लगातर ७ दिनों तक छोड़ दें ७ दिन के बाद पानी को पाँव से पर्याप्त हलचल कर बाहर निकाल दे जिससे घुलनशील लवण पानी के साथ बाहर निकल जायेंगे |यदि यह प्रक्रिया दुहरा संकें तो बेहतर होगा | जिप्सम अपनाना - इस प्रकिया के उपरान्त जब भूमि में नमी हो उसी समय जिप्सम की आवश्यक मात्रा को जमीन पर बिखेर कर भूमि में डिस्क हैरो से भलीभांति मिला दें। भूमि में जिप्सम मिलाने के पश्चात पानी भर देते हैं। १५ दिनों तक १ सेमी पानी भर कर रखते है। 16 वें दिन पानी को निकाल देते हैं |

चतुर्थ चरण में – इस भूमि पुआल या पैरा या अन्य जीवांश की एक परत बिछा दें इसके ऊपर देशी गौ मूत्र की छिड्काव करें तत्पश्चात इसके ऊपर कम्पोस्ट की एक पतली परत बिछा दें ध्यान रखें की भूमि और बिछावन में नमी की पर्याप्त मात्रा कम से कम 15 दिनों तक बना कर रखें |
पांचवे चरण में – तत्पश्चात इस भूमि में सनई, ढेंचा, पटसन, मुंग या क्षेत्र के अनुरूप अन्य हरी खाद का फसल लगा देतें है फसल में फुल आने तक अच्छी सिचाई करतें है तब इस फसल को दबा देतें है इस के ऊपर पानी की मात्रा हरी खाद के पुरी तरह सड़ने तक बनाए रखतें है |
पांचवा चरण -- खरीफ की फसल का समय पहुँच गया हो तो धान की सहनशील प्रजातियों रोपाई करते है | रबी की फसल काल आने पर मुंग, चना, मटर, मेथी जैसी भूमि में उर्वरता बढाने वाली फसले लेना चाहिए |
मुख्य बात --- यह प्रक्रिया चतुर्थ चरण से निरंतर दोहरातें रहें | इस भूमि का गौ जीवामृत, गौ मूत्र, कम्पोस्ट, मट्ठा दवा, नीम की खली, गौशाला की बिछावन का उपयोग नियमित करना चाहिए | जिप्सम की मात्रा के लिए विशेषज्ञों से सलाह लें |
उपरोक्त प्रक्रिया दो साल उपरान्त बंजर, ऊसर या अति क्ष|रीय भूमि से शुद्ध जैविक कृषि के लायक भूमि तयार कर देगी |
आपका – जयनारायण सिंह दंतेवाडा बस्तर जानकारी और प्रशिक्षण के लये संपर्क 07694062646 |

Saturday 29 August 2015

छांछ या मट्ठा से बना जैविक कीट नाशक --


छांछ या मट्ठा से बना जैविक कीट नाशक --
देशी भारतीय मूल नस्ल की गाय की की दूध से बने दही को मथ कर मख्खन/घी निकाल लेवें | मख्खन/घी निकालने के बाद बचे छांछ को निकाल लेते है | इस छांछ को एक पुराने मटके में मटके में भर कर, खेत में किसी पेड़ के निचे मटके को गाड़ देते है| यदि पेड़ नीम, बरगद या गुलर का हो तो सर्वोत्तम होता है | यह छांछ 25-30 दिन में सड़ जाता है | इस सड़ी हुई छांछ की 500 मिली लीटर या 1/2 लीटर की मात्रा लेकर , 15 लीटर पानी में मिला कर शाम 4.बजे के आसपास फसल पर छिड़कते है ; इस बात का ध्यान रखतें है की छिडकाव के 6 घंटे तक वर्षा न हो, यदि वर्षा हो जाती है तो अगले दिन फिर छिड़काव करें | इस कीटनाशक से से इल्ली की समस्या पर नियंत्रण होता है | फलीदार फसलों में यह काफी प्रभावशाली है |

Friday 28 August 2015

जैविक विधि से बीजोपचार


जैविक विधि से बीजोपचार --
जैविक कृषि में बीज के रोपण के पूर्व कई तरह से जैविक विधि से बीजोपचार किया जाता है | यह बीजोपचार, जैविक कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है; इसमें किसी भी तरह का रासायनिक प्रदार्थ या दवा का उपयोग नही किया जाता है | बीज को रोगरहित बनाने उसकी अंकुरण क्षमता बढ़ाने के लिये बीजामृत का उपयोग किया जाता है। मटका विधि से यह बीजोपचार म बीजामृत बनाने के लिये गाय का भारतवंशी देशी गाय के ताजा गोबर (1 कि.ग्रा.) गोमूत्र (1लीटर), देशी गाय की दूध (100 मि.ली.), चूना (50 ग्राम), 100 ग्राम के लगभग जीवाणु मिट्टी (पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की) इस सभी प्रदार्थों को 10 लीटर पानी में मिलाकर मटके में दो दिनों तक रखते हैं। तत्पश्चात जिस दिन बोवनी करना हो उस दिन इस मिश्रण से बीजोपचार कर बीज को छायेदार स्थान में सुखाकर बोवनी करते हैं

Sunday 23 August 2015

जीरो बजट (लागत विहीन) या प्राकृतिक खेती क्या है….?


जीरो बजट (लागत विहीन) या प्राकृतिक खेती क्या है….?
जीरो बजट एक पूर्ण प्राकृतिक कृषि है इस खेती में पेड़ पौधो के अंश और जीवांश एवं देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है । एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीन तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है । गाय से प्राप्त सप्ताह भर के गोबर एवं गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव
खाद का काम करता है और भूमि की उर्वरकता का ह्रास भी नहीं होता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं
 मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है । 
इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है । जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है । जबकि बीजामृत
 का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है । इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार 
से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है।
फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती 
है । इसके इस्तेमाल से एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण उपज होती है, वहीं दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग 
शून्य रहती है ।